मुक्तहरा सवैया
मुक्तहरा सवैया
मापनी 121 121 121 121
121 121 121 121
कमाल किया करता वह मानुष,जो रखता अति सुंदर ख्याल।
सुबाहु बना चलता जग में,प्रिय रक्षक सा दिखता जगपाल।
मलाल नहीं रखता मन में, उर में उसके पड़ता जयमाल।
सुमोहक भाव लिये चलता, बनता सब का शिव सा रखवाल ।
जहाँ कलिकाल वहीं अति पाप, मनुष्य भयानक रूप दिखाय ।
जहाँ कुप्रवृत्ति वहीं अति दुर्गम,काल कुचक्र डरावन धाय।
जहाँ प्रिय मानव वास नहीं,विष वेलि वहीं कलि कर्म जमाय।
असुंदर वेश धरे बहु दानव, धर्म विरोध अनीति सहाय।
Renu
25-Jan-2023 03:57 PM
👍👍🌺
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Mahendra Bhatt
25-Jan-2023 08:31 AM
Nice
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